धुआँ ही धुआँ शाह-राहों में था मिरा शहर शो'लों की बाँहों में था हया का ज़रा शाइबा तक नहीं किसी की नशीली निगाहों में था बड़े प्यार से आज मुझ से मिला जो हाइल कभी मेरी राहों में था ब-ज़ाहिर तो था वो फ़रिश्ता-सिफ़त मगर मेरे झूटे गवाहों में था मिली बे-गुनाही की उस को सनद जो डूबा सरापा गुनाहों में था 'कमाल' आज वो भी हरीफ़ों में है जो बरसों मिरे ख़ैर-ख़्वाहों में था