दिल की आवाज़ जो अल्फ़ाज़ में ढाली हुई है आरज़ूओं के चमन-ज़ार की पाली हुई है हम असीरान-ए-मोहब्बत हैं हमें क्या मालूम किस की दस्तार सर-ए-बज़्म उछाली हुई है हर तरफ़ दार-ओ-रसन के हैं मराकिज़ तो रहें सरफ़रोशों से ये दुनिया कहीं ख़ाली हुई है उस की तह में हैं निहाँ सैंकड़ों अंदाज़-ए-फ़ुसूँ रस्म-ए-तक़रीब जो महफ़िल से निकाली हुई है ख़्वाब-ओ-ता'बीर की रक़्सिंदा शगुफ़्ता सी कली दामन-ए-शौक़ में मुद्दत से सँभाली हुई है ख़्वाह ग़ैरों से हो या अपने अज़ीज़ों से 'कमाल' गुफ़्तुगू मेरी हुई है तो मिसाली हुई है