धूल न बनना आईनों पर बार न होना बीनाई के रस्ते की दीवार न होना शहरों का विर्सा हैं जलते-बुझते मंज़र रहना लेकिन हम-रंग-ए-बाज़ार न होना ज़हर-हवाएँ पुर्वा रंगों में चलती हैं सादा कलियो उन के लिए गुलनार न होना मिलने का खिलने का मौसम दूर नहीं है नख़्ल-ए-मातम ऐ मेरे अश्जार न होना मैं ने चमन की ख़ातिर कौन से दुख झेले हैं शाख़-ए-बहाराँ मेरे लिए गुल-बार न होना