हज़ार शेवा-ए-रंगीं है इक जफ़ा के लिए निगाह चाहिए नैरंगी-ए-अदा के लिए सवाद-ए-फ़िक्र से उभरी तिरी हसीन निगाह मैं शम्अ' ढूँढ रहा था रह-ए-वफ़ा के लिए वो रंज-ए-राह हो या ख़ौफ़-ए-गुमरही ऐ दोस्त जो राह-रौ के लिए है वो रहनुमा के लिए ये बंदगी ये रियाज़त ये ज़ोहद ये तक़्वा ये सब ख़ुदी के लिए है कि है ख़ुदा के लिए ये वक़्त वो है कि दीवाना तोड़ दे ज़ंजीर कि खुल रही है वो ज़ुल्फ़-ए-सियह दुआ के लिए मिटा मिटा के बनाए गए ख़म-ए-गेसू पड़ी गिरह पे गिरह एक मुब्तला के लिए सुकूत-ए-शब में कि ठहरी है काएनात की नब्ज़ दिल आश्ना का धड़कता है आश्ना के लिए बस एक निगाह ने दोनों को दे रखा है फ़रेब 'रज़ा' तुम्हारे लिए है न तुम रज़ा के लिए