धुंद छटने के इंतिज़ार में हूँ मैं अभी अपने ही ग़ुबार में हूँ जिस को आसेब कह रहे हैं लोग मैं उसी इश्क़ के हिसार में हूँ शोर आँगन में है तो होता रहे मैं तो दस्तक के इंतिज़ार में हूँ मा'रका ख़त्म क्यों नहीं होता कब से मसरूफ़ आर-पार में हूँ ज़िंदगी और चीज़ होती है मैं तो साँसों के कारोबार में हूँ ये मिरी प्यास का इलाक़ा है या'नी आँखों के आबशार में हूँ कल था मैं साहिब-ए-यद-ए-बैज़ा अब अँधेरों के इख़्तियार में हूँ आख़िरी आदमी हूँ मैं 'तारिक़' और मैं आख़िरी क़तार में हूँ