ढूँडे न मिरा दिल किसी ग़म-ख़्वार का साया मिल जाए अगर आप की दीवार का साया इस अंधे कुएँ से जो निकल कर कोई देखे आता है नज़र धूप में अश्जार का साया ज़रख़ेज़ है मिट्टी उसी शादाब ज़मीं की जिस पर है किसी अब्र-ए-गुहर-बार का साया डरता हूँ कि सुन कर मिरे अशआ'र-ए-दिल-अफ़गार पड़ जाए न इस पर ग़म-ओ-अफ़्कार का साया जब तक नहीं मरने का ये इक जज़्बा-ए-ईसार फैला है सरों पर रसन-ओ-दार का साया आता हूँ मैं कर दो शब-ए-तीरा को ख़बर-दार सीने में छुपाए हुए अनवार का साया लूटा न मज़ा हुस्न-ए-नज़र का कभी उस ने उतरा न कभी नर्गिस-ए-बीमार का साया जीना भी है मुश्किल कि 'ज़िया' रहता है सर पर हर लहज़ा लटकती हुई तलवार का साया