दिल में जो कुछ है अभी उस की पज़ीराई नहीं मैं कि ख़ुशबू हूँ प खुलने की घड़ी आई नहीं अन-कही बात के सौ रूप कही बात का एक कभी सुन वो भी जो मिन्नत-कश-ए-गोयाई नहीं मेरी नज़रों में है खिलते हुए फूलों की तरह वो नमी जो अभी शाख़ों में भी लहराई नहीं क्या मनाज़िर थे कि जो देखती आँखों देखे ख़्वाब बुनता हूँ कि आसूदा-ए-बीनाई नहीं सभी दाना सभी सर डाल के चुप बैठ रहे कि यहाँ कोई भी शाइस्ता-ए-रुस्वाई नहीं दिल बुझा हो तो गुल-ए-नग़्मा भी नश्तर है 'ज़िया' शिद्दत-ए-ग़म का इलाज अंजुमन-आराई नहीं