ढूँढने से यूँ तो इस दुनिया में क्या मिलता नहीं सच अगर पूछो तो सच्चा आश्ना मिलता नहीं आप के जो यार बनते हैं वो हैं मतलब के यार इस ज़माने में मुहिब्ब-ए-बा-सफ़ा मिलता नहीं सीरतों में भी है इंसानों की बाहम इख़्तिलाफ़ एक से सूरत में जैसे दूसरा मिलता नहीं दैर ओ काबा में भटकते फिर रहे हैं रात दिन ढूँढने से भी तो बंदों को ख़ुदा मिलता नहीं हैं परेशाँ और हैराँ जाएँ तो जाएँ किधर राह-गुम-गश्तों को मंज़िल का पता मिलता नहीं बुल-हवस दिल की तरह हर रंग है सर्फ़-ए-शिकस्त लाला ओ गुल में भी रंग-ए-देर-पा मिलता नहीं है यहाँ तो सैर-ए-गुलज़ार-ए-ख़याल नौ-ब-नौ हाँ असीरो हम को मज़मूँ कुछ नया मिलता नहीं रोइए रोना ज़माने का तो 'कैफ़ी' किस के पास कोई इस दिल के सिवा दर्द-आश्ना मिलता नहीं