ढूँढता है तू आसमान में क्या कोई तेरा नहीं जहान में क्या उफ़ ये सन्नाटा दिल के आँगन में कोई रहता नहीं मकान में क्या अब जो वो मुस्कुरा के मिलता है तीर जोड़ा है फिर कमान में क्या मुझ से क्यों मेरा हाल पूछो हो कुछ कमी पाई आन-बान में क्या रोज़ी मेहनत से वो कमाने लगा कुछ नहीं आता अब लगान में क्या बे-सबब बद-ज़बान बोलता है झोल है उस के ख़ानदान में क्या फूल से उस के मुँह से झड़ते हैं बोला वो 'मीर' की ज़बान में क्या अपनी मंज़िल न पा सके 'बेबाक' कुछ कमी रह गई उड़ान में क्या