ढूँडिए रात की वुसअ'त में निशाँ सूरज के राज़ हो जाएँगे अज़ ख़ुद ही अयाँ सूरज के फ़िक्र की आँखों से दुनिया की कहानी पढ़िए हर कहानी में हक़ाएक़ हैं निहाँ सूरज के कई सदियों से उजाले नहीं पहुँचे जिस में ऐसे भी गाँव में होते हैं मकाँ सूरज के रोज़-ए-अव्वल से उन अफ़्लाक में जिन से है चमक हैं यक़ीनन वो सभी काहकशाँ सूरज के चाँदनी फ़िक्र की धरती पे सजाए रखिए वादी-ए-ख़्वाब में बनते हैं जहाँ सूरज के ग़ौर से देखो तो शबनम का भी क़तरा सूरज और समझो तो हैं ये आब-ए-रवाँ सूरज के