है अक्स सतलज-ओ-रावी चनाब सूरज का इस अर्ज़-ए-ख़ाक की हर शय है ख़्वाब सूरज का फ़लक पे चाँद सितारों में भी निहाँ है वही समुंदरों में भी सूरज सराब सूरज का न ताब ला सकी पल भर को भी निगाह-ए-कलीम जो कोह-ए-तूर से उभरा शबाब सूरज का है बे-शुमार इस आलम में रौशनी के ख़ुदा ज़मीं पे सहल नहीं इंतिख़ाब सूरज का वो एक ही है हमेशा से और रहेगा सदा कभी न होगा जहाँ में जवाब सूरज का रिदा-ए-ज़ुल्मत-ए-दुनिया 'मिराक़' कुछ भी नहीं मिरी नज़र में तो शब है नक़ाब सूरज का