ज़िंदगी बे-दलील कितनी है हर ख़ुशी याँ क़लील कितनी है नींद रूठी हुई है मुद्दत से शब-ए-हिज्राँ तवील कितनी है मंज़िलों के शुमार-ए-कार बता ख़्वाहिशों की सबील कितनी है कौन आख़िर लगाता अंदाज़ा गहरी आँखों की झील कितनी है ज़ुल्म का हाथ बढ़ गया हद से अभी रस्सी में ढील कितनी है ये जो दो दिन की ज़िंदगी है 'दुआ' ये हसीन-ओ-जमील कितनी है