दिखला दो नक़्श पा-ए-रसूल-ए-अमीन को ता-मश्क़ सज्दा हो मिरे लौह-ए-जबीन को ऐ आह-ए-दिल जो जावे तो अर्श-ए-बरीन को कहियो सलाम ईसा गर्दूं-नशीन को बलबे शरार-ए-अश्क की गर्मी कि अब तलक इक आग लग रही है मिरी आस्तीन को था मैं कमीन-ए-बोसा मैं बोले इसी लिए अशराफ़ मुँह लगाते नहीं हैं कमीन को जब मैं हँसूँगा आप से रो दीजिएगा न फिर तुम बहुत हो छेड़ते इस कम-तरीन को कहती हो क्या रक़ीब को भेजूँ बता सलाह ला'नत ही भेजिएगा यज़ीद-ए-लईन को देखूँ हूँ गर अलिफ़ को तो ऐ दिल हज़ार बार करता हूँ याद तेरे क़द-ए-दिल-नशीन को आवे नज़र जो लाम तो आवे ख़याल-ए-ज़ुल्फ़ जब सीन पढ़ के देखूँ हूँ दंदाँ मसीन को करता हूँ तेरी उल्फ़त-ए-दंदाँ में सीन सीन याँ तक कि पहुँचा हूँ मैं दम-ए-वापसीन को तब्दील-ए-बहर से वो ग़ज़ल पढ़ ब-आब-ओ-ताब 'एहसाँ' ख़ुशी हो जिस से दिल-ए-सामईन को