दिल अजब गुम्बद कि जिस में इक कबूतर भी नहीं इतना वीराँ तो मज़ारों का मुक़द्दर भी नहीं डूबती जाती हैं मिट्टी में बदन की कश्तियाँ देखने में ये ज़मीं कोई समुंदर भी नहीं जितने हंगामे थे सूखी टहनियों से झड़ गए पेड़ पर फल भी नहीं आँगन में पत्थर भी नहीं ख़ुश्क टहनी पर परिंदा है कि पत्ता है 'अदीम' आशियाना भी नहीं जिस का कोई पर भी नहीं जितनी प्यारी हैं मिरी धरती को ज़ंजीरें 'अदीम' उतना प्यारा तो किसी दुल्हन को ज़ेवर भी नहीं