दिल बहुत बे-क़रार होता है जब तिरा इंतिज़ार होता है बाँसुरी की सदा पे मत जाना उस का सीना फ़िगार होता है ये सियासी मचान है कि जहाँ ख़ुद शिकारी शिकार होता है रोज़ होती कहाँ है चश्म-ए-करम हादिसा एक बार होता है उन की यादों के फूल खिलते हैं मौसम-ए-ख़ुश-गवार होता है क्यों सफ़र में है धूप का एहसास जब शजर साया-दार होता है लब पे होता है इख़्तियार मगर दिल पे कब इख़्तियार होता है जिस का पुर्सान-ए-हाल कोई नहीं उस का परवरदिगार होता है तज़्किरा बज़्म-ए-ग़ैर में 'सिद्दीक़' आज भी बार-बार होता है