दिल को मसरूफ़-ए-कार रहने दो हिज्र में बे-क़रार रहने दो हसरत-ए-इंतिज़ार रहने दो यूँही लैल-ओ-नहार रहने दो उन की यादों का सिलसिला है अभी मौज-ए-बाद-ए-बहार रहने दो फूल खिलने लगे हैं चाहत के मौसम-ए-ख़ुश-गवार रहने दो ख़्वाब होगा कभी हक़ीक़त भी ख़्वाब को बरक़रार रहने दो ज़र्द मौसम भी बीत जाएगा इंतिज़ार-ए-बहार रहने दो हौसला हारने से क्या हासिल दिल को उमीद-वार रहने दो ख़ूँ-चकाँ और ख़त भी लिखने हैं उँगलियों को फ़िगार रहने दो