दिल-ए-वहशी से प्यार कौन करे जब्र को इख़्तियार कौन करे राएगाँ सारी मेहनतें होंगी जम्अ दामन के तार कौन करे अश्क-ए-ख़ूनीं हैं गुल खिलाने को इंतिज़ार-ए-बहार कौन करे हम न हों गर शरीक-ए-महफ़िल-ए-नाज़ उन को फिर शर्मसार कौन करे हम को ख़ुद इंतिज़ार है अपना आप का इंतिज़ार कौन करे दिल पे अपने नहीं है जब क़ाबू उन से क़ौल-ओ-क़रार कौन करे हम तो लाला-रुख़ों से बाज़ आए सीने को दाग़दार कौन करे हम ही शिकवों से बाज़ आएँ 'नदीम' उन को फिर अश्क-बार कौन करे दाग़-ए-दिल मत कुरेद ऐ 'नक़वी' सैर-ए-ज़ख़्म-ए-बहार कौन करे