घर में न जाओ ग़ैर के मत ये सितम करो आओ ग़रीब-ख़ाने ही तक टुक करम करो शायद वो चाहने लगे मुझ को भी दोस्तो टुक उस के दिल पे सूरा-ए-इख़लास दम करो मिलना ज़ियादा ग़ैरों से कुछ ख़ूब तो नहीं मानो कहा तुम उन से मुलाक़ात कम करो जुज़ हाल-ए-दिल जो ख़त मैं लिखूँ और कुछ तुम्हें तो हाथ मेरे शौक़ से साहिब क़लम करो मक़्सूद-ए-दिल हुसूल हुआ मुझ को देर में सुनते हो ज़ाहिदो तुम्हीं तौफ़-ए-हरम करो 'अफ़सोस' को तो वाइ'ज़ो कहते हो बद वले तब जानें राम तुम कोई ऐसा सनम करो