दो हाथ जोड़ कर ये गुज़ारिश जनाब है ज़ाए' न कीजिए जो ये ‘अहद-ए-शबाब है ज़ाहिर हैं चंद जल्वे तो पिन्हाँ हज़ार हैं गाहे नज़र है आइना गाहे नक़ाब है वा'इज़ न अहल-ए-दिल को तू काफ़िर क़रार दे तू पढ़ सके कभी तो ये दिल भी किताब है अंधा हुआ है आदमी दौलत के फेर में देखो जो ग़ौर से तो ये ज़र भी तुराब है आए नहीं तो न सही ये तो पता चले निय्यत ख़राब है कि तबी'अत ख़राब है रहता है दोस्तों के सदा दिल में तू 'सदा' दुनिया समझती है कि तू ख़ाना-ख़राब है