दिल होते होते मंज़िल-ए-जानाना हो गया आबाद रफ़्ता रफ़्ता ये वीराना हो गया वो हैं कि दो-जहान को अपनाए जाते हैं मैं हूँ कि अपनी ज़ात से बेगाना हो गया जलने का शौक़ उफ़ तिरे कुश्ते की ख़ाक का जो ज़र्रा उड़ गया वही परवाना हो गया तेरी तजल्लियों ने वो बदली हैं सूरतें मेरा ख़याल एक परी-ख़ाना हो गया वो राह राह-ए-इश्क़ है जिस में कि रह-नवर्द दीवाना जो हुआ वही फ़रज़ाना हो गया मस्ती की लग़्ज़िशों को था एहसास-ए-बंदगी गिरना ही मेरा सज्दा-ए-शुकराना हो गया साक़ी की आँख में वो बला की शराब थी बद-मस्त इक निगाह में मय-ख़ाना हो गया बेगानगी में शाद हूँ मैं इस ख़याल से तेरा वही है सब से जो बेगाना हो गया बज़्म-ए-क़दह को देख के ख़ुद-ग़र्ज़ियों से पाक 'नामी' शरीक-ए-मस्लक-ए-रिंदाना हो गया