दिल जहाँ से उठाए बैठे हैं सब को देखे दिखाए बैठे हैं चाक-ए-दामन ये कह रहा है कि हम दिल के टुकड़े उड़ाए बैठे हैं वो सर-ए-बज़्म हाल क्या पूछें मेरे मतलब को पाए बैठे हैं अब अजल क्यूँ कि आएगी देखूँ वो अयादत को आए बैठे हैं करते हैं यूँ दुआ कि हम गोया हाथ असर से उठाए बैठे हैं अगर आते हैं वो तो आने दो हम भी आँखें बिछाए बैठे हैं उस के दिल में असर कर ऐ गिर्या ग़ैर क्या घर बनाए बैठे हैं उस के वादे को जानते हैं हम शाम से ज़हर खाए बैठे हैं दर से वहशत-ज़दों को ख़ुद न उठा ये कोई एक जाए बैठे हैं अब तो लब तक भी आ न ऐ नाले हम तुझे आज़माए बैठे हैं तुम भी कर जाओ पाएमाल कि हम नक़्श-ए-हस्ती मिटाए बैठे हैं किस को देख ऐ हज़रत-ए-'सालिक' आज कुछ मुँह बनाए बैठे हैं