दिल जो दर्द-आश्ना नहीं होता वो किसी काम का नहीं होता ग़म अगर शामिल-ए-हयात न हो ज़ीस्त का हक़ अदा नहीं होता दिल नहीं है वो और ही कुछ है जिस में कुछ मुद्दआ' नहीं होता ज़िंदगी बे-नशात लगती है दर्द जब तक सिवा नहीं होता अब 'ज़िया' क्या सुनाए हाल-ए-दिल कुछ ज़बाँ से अदा नहीं होता