फ़रेब देते हैं कोई बुरा नहीं करते हुसूल-ए-ज़र के लिए लोग क्या नहीं करते अदम वजूद बराबर है इन निकम्मों का जो आगही के फ़राएज़ अदा नहीं करते बुराइयों की तो हम लोग खोज करते हैं भलाइयों का मगर तज़्किरा नहीं करते ये मौलवी हैं इन्हें भी लगाइए नश्तर जो क़ौल करते हैं वा'दा वफ़ा नहीं करते 'ज़िया' हमारा ये मस्लक है यावा-गोई से कभी ज़बान को हम बद-मज़ा नहीं करते