दिल का आज़ार कम नहीं होता शौक़-ए-दीदार कम नहीं होता बढ़ रही है बहुत मसीहाई दर्द-ए-बीमार कम नहीं होता सुल्ह-साज़ान-ए-बज़्म-ए-आलम का जोश-ए-पैकार कम नहीं होता देख कर तुम को और को देखें अब तो मेआ'र कम नहीं होता उन के इंकार-ए-रूह-फ़र्सा से उन का इक़रार कम नहीं होता ऐ फ़लक और कोई ताज़ा सितम करम-ए-यार कम नहीं होता ज़ाहिरी हक़-परस्तीयों से कभी कुफ़्र-ए-दीं-दार कम नहीं होता दौर-ए-मय में कमी तो आती है शौक़-ए-मय-ख़्वार कम नहीं होता मय से रग़बत है शैख़ को हर-चंद मय से इंकार कम नहीं होता 'अर्श' दाद-ए-सुख़न न मिलने से लुत्फ़-ए-अशआ'र कम नहीं होता