दिल का गुलशन जला गए काँटे उन की यादें मिटा गए काँटे अब ज़रूरत नहीं रही गुल की इतनी कसरत से आ गए काँटे ज़ीस्त में रह गई चुभन ही चुभन ऐसा क़ब्ज़ा जमा गए काँटे गुल ही क्या गुल्सिताँ भी हैराँ है इस क़दर मुझ को भा गए काँटे अब तो ख़ुशियों की बू नहीं मिलती हर तरफ़ ग़म के छा गए काँटे उन पे कलियाँ भी हो गईं शैदा ओस में यूँ नहा गए काँटे क्या किया तुम ने अजनबी मोहसिन राह से क्यों हटा गए काँटे अब फटा जा रहा है मेरा दिमाग़ कैसी ख़ुशबू बसा गए काँटे मैं तो मोहसिन उन्हें समझता रहा नफ़रतें क्यों बढ़ा गए काँटे मुझ को एहसास तक न हो पाया दोस्त बन कर समा गए काँटे हम तुम्हारे बने रहे हम-दम ख़ूब एहसाँ जता गए काँटे रोज़-ओ-शब का रहा न फ़र्क़ कोई नींद ऐसी सुला गए काँटे कम नहीं हम पे उन का ये एहसाँ रम्ज़-ए-दुनिया बता गए काँटे कैसे अज़बर किताब होती मुझे हर सबक़ फिर भुला गए काँटे जैसे साथी जनम के हों 'क़ुदसी' यूँ गले से लगा गए काँटे