न माह-रू न किसी माहताब से हुई थी हमें तो पहली मोहब्बत किताब से हुई थी फ़रेब-ए-कुल है ज़मीं और नमूना-ए-अज़्दाद कि इब्तिदा ही गुनाह-ओ-सवाब से हुई थी बस एक शब की कहानी नहीं कि भूल सकें हर एक शब ही मुमासिल इ'ताब से हुई थी वजूद-ए-चश्म था ठहरे समुंदरों की मिसाल नुमूद-ए-हालत-ए-दिल इक हबाब से हुई थी जज़ा-ए-इश्क़-ए-हक़ीक़ी रही तलब अपनी ख़ता-ए-इश्क़-ए-मजाज़ी जनाब से हुई थी उसी से तीरा-शबी में है मंज़रों का वजूद वो रौशनी जो मशिय्यत के बाब से हुई थी वही तो जेहद-ए-मुसलसल की इब्तिदा थी 'अली' जब आश्नाई क़दम की रिकाब से हुई थी