दिल कहाँ अब किसी से मिलता है ख़ुद से भी बे-दिली से मिलता है ख़ुश्क से हो गए हैं रिश्ते सब हर कोई बे-रुख़ी से मिलता है ख़ार अपनों के भूल जाती हूँ फूल जब अजनबी से मिलता है मोल होता जहाँ में हर शय का ये सबक़ मुफ़्लिसी से मिलता है 'सर्व' मत पूछ तू मज़ा कितना दूसरों की ख़ुशी से मिलता है