दिल के चर्ख़े पे सूत साँसों का काते जाते हैं और ज़िंदा हैं हो गई ग़ैर वो गली फिर भी आते जाते हैं और ज़िंदा हैं अहल-ए-दिल बोल इक मोहब्बत का गाते जाते हैं और ज़िंदा हैं रंग ख़ुशबू फ़ज़ा नए मंज़र भाते जाते हैं और ज़िंदा हैं हर क़दम पर फ़रेब-ए-दिलदारी खाते जाते हैं और ज़िंदा हैं