दिल के दाग़ नुमायाँ होंगे ज़ख़्मों की रुस्वाई होगी ज़ालिम के अंदाज़ न पूछो अपनी बात पराई होगी हर जा साज़िश हर जा पहरे एक ज़माना दुश्मन सा है सोचता हूँ इक शोख़ ने कैसे प्यार से आँख मिलाई होगी शहर-ए-वफ़ा का दुश्मन है तू जितना चाहे ग़ारत कर ले कल तो आँख मिला कर हम से आँख तिरी शर्माई होगी झाँक रहे हो दूर से अब तक शीतल नैन कँवल में क्या क्या डूब के देखो इन आँखों में कितनी ही गहराई होगी मानते हैं इस दौर में 'सरमद' धूम मची है अय्यारों की जाग उठा इंसान तो इक दिन हर जानिब सच्चाई होगी