हम कि मायूस हुए हैं दिल-ए-नाकाम से भी एक वहशत हुई जाती है तिरे नाम से भी वही डसती हुई नज़रों से भरा शहर तिरा वही तन्हाई का एहसास दर-ओ-बाम से भी ख़ुद को भी भूल गए तर्क-ए-मरासिम करते लो तिरे ग़म में गए आख़िरी इल्ज़ाम से भी जाने उस शोख़ ने देखा मुझे किस तेवर से अब तो घबराया सा रहता हूँ तही जाम से भी कुछ तो उस ख़ंदा-ए-शादाब से मौसम लहका और कुछ मेरे मोहब्बत भरे पैग़ाम से भी हाँ इसी क़ुर्ब के शो'लों की हवा से 'सरमद' दिल सुलगता है तो जलते हैं ख़ुनुक शाम से भी