दिल के ज़ख़्मों का कुछ क्या न करो चाक हो जाए तो सिया न करो ख़्वाब होते हैं देखने के लिए उन में जा के सनम जिया न करो जिसे तुम छोड़ आए हो वो शहर उसे अब याद तुम किया न करो राह में छोड़ कर चला जो गया नाम उस शख़्स का लिया न करो बड़े आदाब हैं मुशाएरे के कभी वक़्त-ए-सुख़न पिया न करो इतना कम-ज़र्फ़ वो नहीं 'माहम' उसे तुम मशवरे दिया ना करो