कलियों पे शबाब आए फूलों पे निखार आए इक आप के आने से गुलशन में बहार आए ये कैसी अदावत है ये कैसी मोहब्बत है तुम से ही गिले शिकवे और तुम पे ही प्यार आए आने की ख़बर दे कर आए न अभी तक वो आ जाएँ तो शायद फिर इस दिल को क़रार आए महफ़िल में रक़ीबों की वो जाते हैं ख़ुश हो कर कहते हैं मोहब्बत का हम क़र्ज़ उतार आए इस दस्त-ए-मुबारक से तस्कीन नहीं होती आँखों से पिला साक़ी तब जा के ख़ुमार आए गुलशन को लहू दे कर सींचा है 'समर' मैं ने लेकिन मिरे हिस्से में बस ख़ार ही ख़ार आए