दिल के कहने पे मैं चला ही नहीं इश्क़ की चाल में फँसा ही नहीं इस गिरानी में इश्क़ को टटोला लाख पीटा मगर चला ही नहीं जिस तरह मैं लुटा जवानी में यूँ कोई आज तक लुटा ही नहीं आज सारी अकड़ निकल जाती कोई ग़ुंडा हमें मिला ही नहीं कल जो कहते थे ग़ैर को अंधा आज ख़ुद उन को सूझता ही नहीं इन अदाओं पे मर गए लाखों उन के नज़दीक कुछ हुआ ही नहीं