जिस पे नेता की नज़र सुब्ह रहे शाम रहे धोंस में उस की न क्यों गर्दिश-ए-अय्याम रहे हुस्न-ए-फैशन से जो हर वक़्त खुले आम रहे नौजवानों को न क्यों इश्क़ का सरसाम रहे सर पे ससुराल में हर शख़्स बिठाता है मुझे जब तलक जेब में सरकार मिरी दाम रहे जिस ने ली हाथ में रिश्वत उसे पकड़ा लेकिन हुक्म था जिन का वो गुम-नाम थे गुम-नाम रहे देखते जाइए कुछ दूर नहीं है वो वक़्त हुस्न सड़कों पे रहे इश्क़ सर-ए-बाम रहे मार खाई तिरी उल्फ़त में हमीं ने ऐ दोस्त हाए क़िस्मत कि हमीं मोरिद-ए-इल्ज़ाम रहे मिट गए सारे तअ'स्सुब ये मज़ा है 'नावक' शैख़ के साथ ही जब जेल में गुमनाम रहे