दिल के शजर को ख़ून से गुलनार देख कर ख़ुश हूँ नई बहार के आसार देख कर सहरा भले कि ज़ेहन को कुछ तो सुकूँ मिले घबरा गया हूँ शहर के बाज़ार देख कर आगे बढ़े तो तीरगी-ए-शब ने आ लिया निकले थे घर से सुब्ह के आसार देख कर आँसू गिरे तो दिल की ज़मीं और जल उठी बरसा है अब्र ख़ाक का मेआ'र देख कर सारे जहाँ को हल्क़ा-ए-मातम समझ लिया अपना वजूद नुक़्ता-ए-पुर-कार देख कर औरों को तू ने दौलत-ए-कौनैन बाँट दी ग़म मुझ को दे दिया है सज़ा-वार देख कर बैठे तो आँच देने लगी पीपलों की छाँव आए थे लोग साया-ए-अश्जार देख कर जिस तरह कोई बछड़ा हुआ दोस्त मिल गया हम मुस्कुरा दिए रसन-ओ-दार देख कर बैठा हूँ अपने फ़िक्र के साए में देर से हर आश्ना को उन का तरफ़-दार देख कर 'ज़ुल्फ़ी' दुखों की धूप में जलते हुए बदन बादल गुज़र गया है कई बार देख कर