दिल की अब क्यों ख़बर नहीं आती काम क्यों चश्म-ए-तर नहीं आती जाने किस हाल में हैं अहल-ए-नज़र अब किसी की ख़बर नहीं आती क्या हुआ गर्दिश-ए-ज़माना को बाद-ए-शब क्यों सहर नहीं आती अश्क आएँ तो बढ़ के दामन तक आह लब तक अगर नहीं आती क्या सज़ाओं पे सिर्फ़ क़ादिर हो सूरत-ए-दर-गुज़र नहीं आती अब निगार-ए-ग़ज़ल 'ज़िया' कोई भूल कर भी इधर नहीं आती