दिल की तौहीन न कर दर्द सुनाने वाले इस ज़माने में ज़ियादा हैं ज़माने वाले इस गली से भी कभी खोल के ज़ुल्फ़ों को गुज़र सर पे रक्खे हुए ख़ुशबू के ख़ज़ाने वाले आँख ता'बीर की दहलीज़ पे रक्खी हुई है ख़्वाब भी देखे हैं नींदों को उड़ाने वाले राहत-ए-जाँ है तिरी साँस की ख़ुशबू जानाँ फूँक मंतर ये मुझे होश में लाने वाले अंधी आँखों पे तू मत बाँध हवस की पट्टी तोड़ कर ख़्वाब नए ख़्वाब दिखाने वाले तू मिरा था तो तिरा नाम सहारा भी था छोड़ कर मुझ को वजूद अपना गँवाने वाले वक़्त जिद्दत के तआ'क़ुब में कहाँ ले आया दीन सिखलाएँगे अब नाचने गाने वाले बिन तिरे साँस का एहसान जताता हुआ जिस्म छोड़ने वाला हूँ ऐ छोड़ के जाने वाले आज भी मेरे लड़कपन को तू देखे 'शाहिद' काश लौट आएँ मिरे दोस्त पुराने वाले