दिल की वहशत ने वो दीवाना बनाया मुझ को दूर भागे है मिरा छोड़ के साया मुझ को हाथ उठाने के नहीं इश्क़-ए-बुताँ से नासेह लाख की एक कही और न बकवा मुझ को एक तो जौर-ए-बुताँ दूसरी ये और सुनो चैन देता नहीं इक दम दिल-ए-शैदा मुझ को तर्क-ए-आदाब न हो ख़ंजर-ए-क़ातिल के तले जान दे ओ दिल-ए-बेताब न तड़पा मुझ को ग़ुंचा-ए-गुल न समझना दिल-ए-आशिक़ हूँ मैं तू ही जानेगी सबा देख जो छेड़ा मुझ को कुछ भी ग़ैरत है तुझे देख तू ऐ ख़ाना-ख़राब लोग कहते हैं तिरे इश्क़ में क्या क्या मुझ को शो'ला-ए-इश्क़ की गर्मी ने शब-ए-फ़ुर्क़त में शम्अ साँ सुब्ह से पहले ही नबेड़ा मुझ को दिल को ले भागे हैं जब माँगूँ हूँ दिखला रुख़-ओ-ज़ुल्फ़ बस बताते हैं यूँ ही शाम-ओ-सवेरा मुझ को 'ऐश' इसे ख़ूबी-ए-क़िस्मत के सिवा क्या कहिए दिल मिला है सो वो लबरेज़-ए-तमन्ना मुझ को