दिल की ये आरज़ू है सनम बोलते रहो तुम को हमारे सर की क़सम बोलते रहो सुनते रहेंगे दोस्तो हम बोलते रहो आँखें कभी न होंगी ये नम बोलते रहो ख़ामोशियों ने जन्म दिए हैं नए सितम कब तक ये ज़ुल्म और सितम बोलते रहो दिल ज़िंदा है तो दो कोई उस का सुबूत भी ख़ामोश क्यों हो अहल-ए-क़लम बोलते रहो हक़-गोई की मिसाल है मंसूर अनल-हक़ परवाह नहीं सर हो क़लम बोलते रहो 'सैफ़ी' तिरे अशआ'र पे तन्क़ीद है लाज़िम ताकि हो तिरा तेज़ क़लम बोलते रहो