दिल को अब हिज्र के लम्हात में डर लगता है घर अकेला हो तो फिर रात में डर लगता है एक तस्वीर से रहता हूँ मुख़ातब घंटों जब भी तन्हाई के हालात में डर लगता है मेरी आँखों से मिरे झूट अयाँ होते हैं इस लिए तुझ से मुलाक़ात में डर लगता है लम्हा-ए-क़ुर्ब में लगता है बिछड़ जाएँगे हाथ जब भी हो तिरे हाथ में डर लगता है आज-कल मैं उन्हें जल्दी ही बदल देता हूँ आज-कल दिल के मकानात में डर लगता है जिस्म की आग को बारिश से हवा मिलती है साथ में तू हो तो बरसात में डर लगता है