दिल को हर हाल में मसरूफ़-ए-दुआ रक्खा है मैं ने ये जुर्म भी अपने पे रवा रक्खा है मेरी हर साँस रसूलों की ज़बाँ है जैसे मैं ने हर साँस में इक हर्फ़-ए-वफ़ा रक्खा है आप तो गर्मी-ए-हालात से घबराते हैं हम ने सूरज को भी सीने में छुपा रक्खा है आगही गर्म-ए-सफ़र है नई मंज़िल की तरफ़ चाँद का ज़िक्र ही क्या चाँद में क्या रक्खा है हम कि हालात की तस्वीर बताने वाले हम को हालात ने तस्वीर बना रक्खा है ज़िंदगी से कहो अब कोई तक़ाज़ा न करे मैं ने हर ग़म को कलेजे से लगा रक्खा है जिस जगह क़ाफ़िला-ए-दर्द रुका था 'ख़ुसरव' दर्द-मंदों ने वहीं शहर बसा रक्खा है