दिल को रंजीदा करो आँख को पुर-नम कर लो मरने वाले का कोई देर तो मातम कर लो वो अभी लौटे हैं हारे हुए लश्कर की तरह साज़-हा-ए-तरब-अंगेज़ ज़रा कम कर लो सनसनाते हैं हर इक सम्त हवाओं के भँवर अपने बिखरे हुए अतराफ़ को बाहम कर लो इतने तन्हा हो तो इस साअ'त-ए-बे-मसरफ़ में अपनी आँखों में कोई चेहरा मुजस्सम कर लो ये ज़मीं टूटे हुए चाँद की खेती है 'ज़ुबैर' मेरी रातों में बपा कोई भी आलम कर लो