दिल को उम्मीद-ए-बला-ए-ना-गहाँ है आज-कल सुन रहा हूँ महव-ए-गर्दिश आसमाँ है आज कल क्यों तुझे ऐ दिल तलाश-ए-कारवाँ है आज-कल चल तन-ए-तन्हा कि वक़्त-ए-इम्तिहाँ है आज-कल बाग़बाँ भी ख़ूब कहता है चमन को लौट कर नाम उस का ही बहार-ए-जावेदाँ है आज-कल ख़ार और रुस्वा फिरा करते थे हम कुछ दिन हुए आह क्यूँकर नेक-नामी का गुमाँ है आज-कल लुट चुकी है जिस गुलिस्ताँ की मताअ'-ए-रंग-ओ-बू मुझ पे उस का पासबाँ कुछ मेहरबाँ है आज-कल एक दिल टूटा हुआ ले कर है सरगर्दां 'नदीम' एक जाम-ए-मय शरीक-ए-दोस्ताँ है आज-कल