मौत से अब डर के घबराता है क्यों वक़्त से पहले मरा जाता है क्यों दोस्ती की है अगर ख़्वाहिश तुझे दुश्मनी की आग भड़काता है क्यों माँगना है जो भी वो मालिक से माँग सब के आगे हाथ फैलाता है क्यों लाज रक्खेगा तिरी मालिक तिरा उठ के चल हिम्मत से घबराता है क्यों जब नहीं आता तुझे कोई हुनर यूँही दुनिया भर को बहकाता है क्यों जो नहीं तुझ को बुलाता शौक़ से उस के घर ऐ 'मेहरबाँ' जाता है क्यों