घर के बर्बाद सही रूह के आबाद हैं हम ये ख़बर किस ने उड़ाई है कि नाशाद हैं हम अपने मिटने का कोई ग़म न करो हम-नफ़साँ इक न इक शक्ल में दुनिया को अभी याद हैं हम अपने अफ़्सानों के उन्वान जुदागाना हैं इक नए दौर के मंसूर हैं फ़रहाद हैं हम पेश-ए-बेदाद-ओ-सितम सर न हुए ख़म अपने गो कि औरों की तरह कुश्ता-ए-बेदाद हैं हम हम ने तस्वीर जो फ़र्दा की बनाना चाही लोग कहते हैं फ़क़त हाल के नक़्क़ाद हैं हम