दिल ले के हसीनों ने ये दस्तूर निकाला दिल जिस का लिया उस को बहुत दूर निकाला ज़ाहिद को किसी और की बातें नहीं आतीं आया तो वही तज़किरा-ए-हूर निकाला दुश्मन को अयादत के लिए यार ने भेजा अच्छा ये इलाज-ए-दिल-ए-रंजूर निकाला ऐ तीर-ए-सितम चल तिरी दावत है मिरे घर ज़ख़्म-ए-दिल-ए-नाशाद ने अंकूर निकाला वो तज़्किरा-ए-ग़ैर पे झुँझला के ये बोले फिर आप ने 'मुज़्तर' वही मज़कूर निकाला