दिल में इक इज़्तिराब है पैहम चश्म-ए-हैराँ पुर-आब है पैहम उन के रुख़ पर नक़ाब है पैहम शौक़ ना-कामयाब है पैहम दिल है पहलू में शो'ला-ए-बेताब जान पर इक अज़ाब है पैहम तू ही आ कर जगा दे अब उस को बख़्त मसरूफ़-ए-ख़्वाब है पैहम दहर में उस की मस्त आँखों से इक न इक इंक़लाब है पैहम वो उधर चुप ख़मोश मैं हूँ इधर यूँ सवाल-ओ-जवाब है पैहम चश्म-ए-मयगूँ का है 'वली' शैदा या'नी बे-मय ख़राब है पैहम