दुनिया-ए-मोहब्बत वीराँ है बेचैन दिल-ए-नाकाम नहीं पहलू में निशान-ए-ज़ख़्म नहीं आँखों में लहू का नाम नहीं नज़रों से मिली थीं जब नज़रें बर्बादी-ए-दिल का ख़दशा था आग़ाज़ ही में हम समझे थे अच्छा इस का अंजाम नहीं मायूस-ए-पयाम अब कान भी हैं महरूम-ए-तकल्लुम हैं लब भी ख़ामोश हैं वो हम भी चुप हैं अब सिलसिला-ए-पैग़ाम नहीं बरबाद-ए-मोहब्बत कर के मुझे बेकार अलम है क्यों तुम को कोताही-ए-क़िस्मत का है गिला तुम पर तो कोई इल्ज़ाम नहीं पैमान-ए-वफ़ा तुम तोड़ चुके मुँह इश्क़ से हम भी मोड़ चुके अब दिल में तुम्हारी याद नहीं अब लब पे तुम्हारा नाम नहीं कोयल जो कभी कूक उठती है दिल में मिरे इक हूक उठती है बरसों हुए तर्क-ए-उल्फ़त को पर दिल को हनूज़ आराम नहीं तन्हा जो कभी रहता हूँ 'वली' कुछ दिल की कही कहता हूँ 'वली' अब फ़िक्र-ए-सुख़न का शौक़ नहीं अब बज़्म-ए-सुख़न से काम नहीं