दिया-सलाई बिना तेल जलने वाली नहीं बग़ैर इश्क़ के ये उम्र कटने वाली नहीं किसी की याद है जो जान पर बनी हुई है ये वो घटा है जो बारिश से टलने वाली नहीं कुछ इस तरह से जुदा हो गए हैं हम दोनों मैं हँसने वाला नहीं और वो रोने वाली नहीं महाज़-ए-इश्क़ से हर शख़्स कामयाब आए दुआ करेंगे मगर बात होने वाली नहीं मैं घर पलटने में उजलत तो कर रहा हूँ मगर ये शाम शाम-ए-जुदाई है ढलने वाली नहीं