दिल में हज़ार उमंगों के दफ़्तर लिए हुए कूज़े में आदमी है समुंदर लिए हुए सीम-ओ-ज़र-ओ-जवाहिर-ओ-गौहर लिए हुए अहल-ए-हवस पहाड़ हैं सर पर लिए हुए दीवार-ओ-दर है जिस में न साए का नाम है हम फिर रहे हैं दश्त में वो घर लिए हुए इस दौर के जवानों को क्या दर्स दीजिए अक्सर हैं आस्तीनों में ख़ंजर लिए हुए इक फूल मैं ने फेंका था उस की तरफ़ जो कल अब वो है मेरी ताक में पत्थर लिए हुए